मोहि छुवौ जनि दूर रहौ जू। जाकौ हृदय लगाइ लयौ है, ताकीं बाँह गहौ जू। तुम सर्वज्ञ और सब मूरख, सो रानी अरु दासी। मैं देखत हिरदय वह बैठो, हम तुमकौं भई हाँसी। बाहँ गहत कछु सरम न आवति, सुख पावत मन माहीं। सुनहु सूर मो तन वह इकटक, चितवति, डरपति नाहीं।।
हिंदी समय में सूरदास की रचनाएँ